इक ऐसे शख़्स को मुझे अपना बनाना था
हर रोज़ जिसके पास नया इक बहाना था
लगता था मुझको हम हैं हमारे ही बीच में
लेकिन हमारे बीच में सारा ज़माना था
मुझको पता था रात में तारे ही गिनने हैं
बस उसको मेरे साथ में दिन ही बिताना था
घायल पड़ा हूँ मैं यहाँ वो तो चला गया
सय्याद था वो और मैं उसका निशाना था
तुझसे भी कोई पूछता होगा यूँ ही कभी
कह देती होगी उससे कि झूठा फ़साना था
सौ काम थे मुझे कि न ये हो सका न वो
पहला था ये कि वक़्त भी मुझको कमाना था
अब तो गुज़र ही जाता हूँ देखे बिना उसे
उस गाँव में कभी मिरा अपना ठिकाना था
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