सितमगर का सितम दुनिया में जब मशहूर हो जाए
अजब क्या है कि हर ज़ख़्म-ए-जिगर नासूर हो जाए
फ़रिश्तों से कहीं आगे निकल जाए मेरी इज़्ज़त
हर इक सज्दा ख़ुदाया गर मेरा मंज़ूर हो जाए
बहुत से और भी अंगूर हैं हमराह उसके तो
मेरे हक़ में कहाँ वो दाना ए अंगूर हो जाए
पुजारी हूँ ग़ज़ाला का मैं और हूँ उम्मती-ए-इश्क़
उसे नफ़रत हो या फिर इश्क़ बस भरपूर हो जाए
ख़ुदाया मेरी ख़्वाहिश है मुहब्बत यूँ लुटाऊँ मैं
झुकाने के लिए दुश्मन भी सर मजबूर हो जाए
तराशा है ख़ुदा ने इस-क़दर उस हुस्न के बुत को
हवा भी उसको छू ले तो वो चकनाचूर हो जाए
न जाने क्या है उसकी झील सी आँखों में इक जादू
जिसे भी इक नज़र देखे वही मख़मूर हो जाए
ये ज़िम्मेदारी हर आशिक़ की है ले आए रस्ते पर
जवानी गर ज़रा सी भी कभी मग़रूर हो जाए
बुलंदी के है जिस माले पे क़ाबिज़ हस्ती-ए- साहिल
अगर हो दूसरा कोई तो झट मग़रूर हो जाए
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