तमाम शहर की अक्सर रहे नज़र में है
वो एक शख़्स जो मेरे लहू जिगर में है
ख़याल-ओ-ख़्वाब की मंज़िल तलाश करता फिरे
हर एक शख़्स यहाँ उम्र भर सफ़र में है
सनम ने पाई है जलवागरी जो क्या बोलूँ
वो बात और वो रौनक़ कहाँ क़मर में है
फ़रेब झूठ रियाकारियाँ करे है अब
न जाने आज का इंसान किस असर में है
हुए हैं इश्क़ में बदनाम इतने हम 'साहिल'
हमारा नाम यहाँ रोज़ ही ख़बर में है
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