ज़ब्त की दिल को पड़ी है ऐसी आदत बेवफ़ा
अब नहीं होती तेरी यादों से वहशत बेवफ़ा
अब नहीं है दिल को तुझ से कोई निस्बत बेवफ़ा
जब नहीं तुझ को रही मेरी ज़रूरत बेवफ़ा
साथ तेरे जब करेगा कोई तुझ सा ही सुलूक
तुझ पे गुज़रेगी किसी दिन तब क़यामत बेवफ़ा
अपनी इन बर्बादियों का हम किसे इल्ज़ाम दें
ख़ुद ही जब निकली है अपनी ही ये क़िस्मत बेवफ़ा
अब तो दर्द-ओ-ग़म हुए मरहम हमारा ख़ुद-ब-ख़ुद
दिल के ज़ख़्मों से नहीं है अब अज़िय्यत बेवफ़ा
तू अज़ल से आज तक बदली न बदलेगी कभी
तुझ पे तो आदम ने भी भेजी थी लानत बेवफ़ा
दिल से साहिल मैं मिटा दूँगा तेरा नाम-ओ-निशाँ
हो गई जिस दिन भी तुझ से मुझ को नफ़रत बेवफ़ा
As you were reading Shayari by A R Sahil "Aleeg"
our suggestion based on A R Sahil "Aleeg"
As you were reading undefined Shayari