पहले तो धड़का कई रोज़ तेरे नाम से दिल
फिर कहीं का न रहा और गया काम से दिल
सोचता हूँ मैं भला कैसे कटेगी ये रात
तेरी यादों से है बेचैन मेरा शाम से दिल
चारागर कोई नया नुस्ख़ा अगर है तो बता
अब किसी तौर बहलता ही नहीं जाम से दिल
हम भी बाज़ार से ले आते कोई और नया
हम को भी होता मयस्सर जो यहाँ दाम से दिल
आने वाले का ज़रा और तू तक ले रस्ता
गर धड़कना है धड़क थोड़ा सा आराम से दिल
क्या भरोसा है पिघल जाए कहाँ धूप में ये
रब्त रखता ही नहीं मोम के अंदाम से दिल
ये इबादत ये नमाज़ें ये तिलावत हैं फ़ुज़ूल
जब कि डरता नहीं अल्लाह तेरे नाम से दिल
और ही होगा वो दीवाना नहीं हो सकता
हो न लबरेज़ अगर दर्द के कोहराम से दिल
हम ने भी सर से कफ़न बाँध लिया है 'साहिल'
ख़ौफ़ खाता ही नहीं अब किसी अंजाम से दिल
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