तेरे जुल्म की इंतिहा लिख रहा हूँ
तुझे आज से बेवफ़ा लिख रहा हूँ
हया लिख रहा हूँ, अदा लिख रहा हूँ
तेरे हुस्न को आइना लिख रहा हूँ
मिले हैं मुझे ग़म मुहब्बत में जितने
उन्हें मैं वफ़ा का सिला लिख रहा हूँ
हथेली पे जब भी लिखूँ नाम तेरा
लगे जैसे कोई दुआ लिख रहा हूँ
हर इक लफ़्ज़ में ज़िक्र आता है तेरा
भले कोई मिसरा नया लिख रहा हूँ
भले ना-ख़ुदा है सितमगर है ज़ालिम
मगर फिर भी उसको ख़ुदा लिख रहा हूँ
लिफ़ाफ़े में रख कर ये दिल अपना साहिल
मैं ऊपर तुम्हारा पता लिख रहा हूँ
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