कलेजे से लगाए हैं ग़ज़ल और इश्क़
लहू भर कर सजाए हैं ग़ज़ल और इश्क़
हमें दोनों ने ही बर्बाद कर डाला
ख़ुदा ने क्यों बनाए हैं ग़ज़ल और इश्क़
ख़ुदा की कम नहीं है ये इनायत भी
मेरे हिस्से में आए हैं ग़ज़ल और इश्क़
जिसे दोनों ही लगते थे बहुत अच्छे
उसी ने ही भुलाए हैं ग़ज़ल और इश्क़
हमारे साथ मय-ख़ाने में क्या आए
मियाँ अब लड़खड़ाए हैं ग़ज़ल और इश्क़
हमारी ज़िंदगी में थे दिए बस दो
हमीं ने ही बुझाए हैं ग़ज़ल और इश्क़
न जीने और न मरने वो हमें देते
जिन्हें हम ही बनाए हैं ग़ज़ल और इश्क़
जिन्हें आँखों ने देखा था जवाँ होते
वही आँखें दिखाए हैं ग़ज़ल और इश्क़
हमें है इश्क़ साहिल आज भी जिन से
वो तो बस जी जलाए हैं ग़ज़ल और इश्क़
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