आदाब दोस्तों!


आज हम इस blog में हमारी वेबसाइट पर भेजी जाने वाली शायरी के अस्वीकार होने के कारणों के बारे में बात करेंगे। आप में से कई नए शायर हमारी ओर से दिए जाने वाले कारणों को समझ पाने में असमर्थ होते हैं। इस blog के ज़रिए हम आपको उन ग़लतियों को ठीक करना सिखाएँगे, जो आपसे अनजाने में हो जाती है या जिनकी जानकारी आपको नहीं होती है। हमारी टीम की ओर से आप सभी के लिए यह एक नया क़दम उठाया गया है, जिसे पढ़ कर आप अपनी ग़लतियों में ज़रूरी सुधार कर पाएँगे। चलिए इन कारणों पर एक एक करके विचार-विमर्श करते हैं- 


1. Your content has been rejected as the couplet submitted doesn't comply with behr.


जैसा कि आप जानते हैं, ग़ज़ल कुछ निश्चित धुनों को आधार बनाकर कही जाती है। इन तमाम धुनों की संरचना छोटी अथवा बड़ी मात्राओं (लघु 1 और दीर्घ 2) की एक क्रमबद्ध व्यवस्था से होती है। इसी क्रमबद्ध व्यवस्था को उर्दू शास्त्र में बहर कहा जाता है। ग़ज़ल कहने के लिए उर्दू शास्त्र में पहले से मौजूद कुछ मूल बहरों को निश्चित कर दिया गया है और इन मूल बहरों से और कई उप-बहरों का निर्माण किया जा सकता है। यदि आपके द्वारा लिखी गई ग़ज़ल बहर की विधा का उल्लंघन करती है तो वो ग़ज़ल बहर से ख़ारिज मानी जाती है और उर्दू अदब में किसी भी बे-बहर संरचना को ग़ज़ल का दर्जा नहीं दिया सकता। 


उदाहरण के तौर पे (2122/ 1212/ 22) उर्दू की एक मक़बूल बहर है। कई शाइरों ने इस बहर को आधार बनाकर ग़ज़लें कही हैं। मिर्ज़ा ग़ालिब का ये शेर इसी बहर में कहा गया है-


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यदि इस शेर में शब्दों के क्रम को उलट दें या कोई शब्द अपने मन मुताबिक़ बदल दें तो बहुत मुमकिन है कि ये शेर बहर से ख़ारिज हो जाएगा। इसलिए बहर की समझ, एक भरपूर और दोष मुक्त ग़ज़ल कहने के लिए बेहद ज़रूरी है। team Poetistic की जानिब से बहर के विषय पर काफ़ी blog शाया किए जा चुके हैं। यदि आप बहर को बेहतर ढंग से समझना चाहते हैं तो इन blog को पढ़ सकते हैं। 


2. Your content has inappropriate Qaafiya and it has been rejected.


क़ाफ़िया ग़ज़ल का एक महत्वपूर्ण अंश है। ग़ज़ल के हर शेर में रदीफ़ से ठीक पहले आने वाले समतुकांत शब्द को क़ाफ़िया कहते हैं। उदाहरण के तौर पे हुआ, दवा, माजरा आदि शब्द ‘आ’ मात्रा की तुकांतता पर निर्भर है। इसलिए शाइर इन शब्दों को क़ाफ़िए के तौर पर ग़ज़ल में इस्तेमाल कर सकता है। ग़ज़ल बिना रदीफ़ के भी कही जा सकती है लेकिन जिस ग़ज़ल में क़वाफ़ी नहीं होते, उस रचना को ग़ज़ल नहीं कहा जा सकता।


ग़ज़ल में क़ाफ़िया मतले से तय हो जाता है। क़ाफ़िए के विषय में अक्सर ग़लती वहाँ देखने को मिलती है जहाँ शायर रदीफ़ के अंश को भी क़ाफ़िया मान लेता है। मिसाल के तौर पर अगर ‘ढलने’ और ‘निकलने’ को मतले में क़वाफ़ी माना गया है तो ग़ज़ल के अगले शेर में ‘पकते’ को क़ाफ़िये के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। अगरचे ढलने और पकते समतुकांत प्रतीत होते हैं मगर मतले के मुताबिक़ हर्फ़-ए-रवी (क़ाफ़िया का आख़िरी अक्षर, मात्रा या अंश) ‘ने’ है और उससे पहले आने वाले शाब्दिक अंश ‘निकल और ढल’ समतुकांत हैं इसलिए ग़ज़ल में निकलने और ढलने को क़वाफ़ी लेना उचित है, परंतु पकते शब्द के अनुसार हर्फ़-ए-रवी ‘ने’ से पहले आने वाला बक़ाया अंश ‘पक’ है जो ‘निकल और ढल’ का समतुकांत नहीं है। इसी कारण ‘पकते’ शब्द को क़ाफ़िया मानना उचित नहीं है। ग़ज़ल कहते समय क़ाफ़िए का चुनाव बहुत सोच समझकर करना चाहिए ताकि क़वाफ़ी से संबंधित इस तरह की ग़लतियों से बचा जा सके। 


3. The given content has already been submitted to Poetistic, hence it has been rejected.


यदि आप एक ही content को एक से अधिक बार website पर submit करते हैं और यदि आपका content शाया हो चुका है या अभी आकलन (assessment) के लिए क़तार में है तो ऐसी परिस्थिति में आपके द्वारा दोबारा प्रस्तुत (submit) किए गए समान कंटेंट को रिजेक्ट कर दिया जाएगा। 



यदि आप किसी दूसरे शायर की रचना को website पर अपने नाम से प्रस्तुत करते हैं तो ऐसी परिस्थिति में प्रस्तुत (submit) की गई रचना को सर्वाधिकार उल्लंघन (copyright infringement) के तहत team Poetistic द्वारा अस्वीकृत (reject) कर दिया जाएगा। Poetistic अपने तमाम उपयोगकर्ताओं (users) से निवेदन करता है कि इस तरह के आचरण से परहेज़ करें। 


5. Please submit each Ghazal/Sher/Nazm independently 


यदि आप एक साथ ग़ज़ल, शेर और नज़्म website पर आकलन के लिए प्रस्तुत करते हैं तो ऐसी स्थिति में भी आपके द्वारा प्रस्तुत किए गए content को रद्द कर दिया जाएगा। Poetistic की जानिब से आपसे अनुरोध है कि ग़ज़ल, शेर अथवा नज़्म को अलग-अलग प्रस्तुत करें। 


6. Please submit your content in the Devanagari script to get published on Poetistic.


Poetistic आपसे अनुरोध करता है कि अपनी रचना को केवल देवनागरी लिपि (hindi) में ही आकलन के लिए प्रस्तुत करें। यदि आप अपनी रचना को इंगलिश, उर्दू अथवा किसी दूसरी लिपि में प्रस्तुत करते हैं तो Poetistic द्वारा ऐसे content को भी रद्द कर दिया जाएगा। 


7. Your submitted content has been rejected as Matla is missing from your Ghazal.


ग़ज़ल की परिभाषा के मुताबिक़ ग़ज़ल में मतला होना ज़रूरी है। किसी भी ग़ज़ल के आकलन के लिए उसमें मतला होना अनिवार्य है ताकि क़ाफ़िए से संबंधित तमाम बारीकियों को जाँचा जा सके। इसलिए आपसे अनुरोध है कि अपनी ग़ज़ल को मतले के साथ ही आकलन के लिए website पर प्रस्तुत करें। 


8. Please resubmit the Nazm with a suitable title to get published on Poetistic.


जैसा कि आप जानते हैं कि नज़्म एक विशेष मौज़ू (topic) पर कही जाने वाली रचना है और किसी भी रचना को ‘नज़्म’ का दर्जा तभी दिया जाता है जब उसका ‘उन्वान’ (topic) उचित हो और हर लिहाज़ से नज़्म के केंद्रीय विचार (central idea) को उजागर करे। इसलिए आपसे अनुरोध है कि नज़्म के साथ उसका उचित उन्वान हमेशा प्रस्तुत करें। 


9. Your submission contains spelling mistakes. Do appropriate corrections and resubmit.


किसी भी content के रद्द होने का प्रमुख कारण है उसमें मौजूद वर्तनी ग़लतियाँ (spelling mistakes)। जब हम उर्दू शब्दों को हिंदी में लिखने का प्रयास करते हैं तो वर्तनी में ग़लतियाँ होना स्वाभाविक है। क्यूँकि दो भाषाओं के बीच काफ़ी ध्वनिक समानताएँ (phonetic similarities) हो सकती हैं। उर्दू सृजन (transcription) देवनागरी लिपि में करते समय यही समानताएँ अक्षरों में कठिनाइयों के साथ-साथ, अक्षर स्वरूपों में भ्रम की संभावना को बढ़ा देती हैं, जिससे अनजाने में वर्तनी की ग़लतियाँ हो सकती हैं। इससे यह पता चलता है कि हमें सावधानीपूर्वक हिंदी और उर्दू स्क्रिप्ट के बीच की भिन्नताओं को समझना चाहिए। 


ज़्यादातर ग़लतियाँ हमें ऐसे शब्दों में देखने को मिलती हैं जिसमें या तो चन्द्रबिंदु का उपयोग किया गया हो या नुक़्ते का। उदाहरण के तौर चन्द्रबिंदु अथवा नुक़्ते का प्रयोग करके सही वर्तनी के साथ लिखे जाने वाले कुछ शब्द जैसे चाँद, ख़ुशियाँ, नदियाँ, काँच, आँगन, ग़लती, जहाज़, फ़िराक़, मिज़ाज, हिज्र इत्यादि, प्रारूप (format) में लिखे जाने वाले शब्दों में हमें आमतौर से ग़लतियाँ देखने को मिल जाती हैं। कोशिश करें कि ग़ज़ल को देवनागरी लिपि में लिखते समय ऐसे शब्दों पर विशेष ध्यान दें जिनमें नुक़्ते या चन्द्रबिंदु का उपयोग किया गया हो। 


10. We request you to submit your Shayari again with the used behr to get published with us.


क्यूँकि बहर का विषय एक तवील (lengthy) विषय है और जैसा कि आप जानते हैं कि उर्दू में प्रचलित 32 बहरों के अलावा भी कई बहरें हैं जो मूल बहरों से निकलती हैं। इसलिए कभी कभी शायर ऐसी बहर का इस्तेमाल भी कर लेता है जो अरबी या फ़ारसी शायरी में तो मक़बूल हैं पर उर्दू शायरी में आमतौर से इस्तेमाल नहीं की जाती हैं। यदि आप अपनी रचना को जल्दी प्रकाशित करवाना चाहते हैं तो आप अपनी रचना में इस्तेमाल की गई बहर को अपने content के साथ लिखकर भेज सकते हैं। 


11. The submitted Nazm has been rejected because it does not have a single identifiable theme.


जैसा कि आप जानते हैं कि नज़्म एक ही मौज़ू पर कही जाने वाली उर्दू शायरी की एक शैली है। कभी कभी नज़्म में विविधता लाने की कोशिश में शायर अस्ल मौज़ू से भटक जाता है। यदि नज़्म अपने मूल विचार से भटक जाती है और अपने उन्वान के अनुकूल भाव को स्पष्ट नहीं करती तो ऐसी स्थिति में भी आपके द्वारा प्रस्तुत की गई नज़्म Poetistic द्वारा रद्द कर दी जाती है।


12. The submission has been rejected because of syntactical errors as different pronouns have been used in reference to the same noun.


अगर आप एक ही संज्ञा के संदर्भ में अलग अलग सर्वनामों का प्रयोग करते हैं या आपके कंटेंट में व्याकरण संबंधी ग़लतियाँ पाई जाती हैं तो ऐसी स्थिति में भी आपके कंटेंट को रद्द कर दिया जाता हैं। इस तरह की ग़लतियाँ ग़ज़ल लेखन में काफ़ी गंभीर मानी जाती हैं। इसके अलावा शब्दों के वैयाकरणिक लिंग पर भी ध्यान दें। भाषा विज्ञान में, वैयाकरणिक लिंग सिस्टम एक ख़ास प्रकार का संज्ञा वर्ग सिस्टम है, जहाँ संज्ञाएँ विशेष लिंग श्रेणियों में रखी जाती हैं, जो संज्ञा के स्त्रीलिंग या पुल्लिंग होने का बोध कराता है। उर्दू भाषा में कई शब्द पुल्लिंग प्रतीत होते हैं हालाँकि वो स्त्रीलिंग होते हैं या इसके विपरीत कुछ स्त्रीलिंग शब्द पुल्लिंग होने का भ्रम पैदा करते हैं जिसके कारण इन संज्ञा शब्दों के संदर्भ में इस्तेमाल होने वाले सर्वनामों में ग़लतियाँ हो जाती हैं। इसलिए ग़ज़ल या शेर कहते समय व्याकरण की बारीकियों का अध्ययन करना बेहद ज़रूरी है। 


13. In your submission, Nuqta is missing in several words. Do appropriate corrections and resubmit.


नुक़्ता, या जिसे बिंदु भी कहा जाता है, एक विशेष चिन्ह है जो देवनागरी और कुछ अन्य लिपियों में उच्चारण में नहीं आने वाली ध्वनियों को दिखाने के लिए लगाया जाता है। यह अरबी लिपि से आया है। उदाहरण के लिए, उर्दू में कुछ अक्षर ऐसे होते हैं जो अरबी-फारसी लिपि में तो मूल रूप से समान होते हैं, लेकिन उनकी भिन्न ध्वनियों के कारण उन्हें देवनागरी लिपि में लिखना संभव नहीं है। इसलिए ऐसे अद्वितीय ध्वनियों वाले अक्षरों के मिलाप से बनने वाले शब्दों को देवनागरी लिपि में नुक़्ते की सहायता से लिखा जाता है। यदि आपने अपनी रचना में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया है जिनमें नुक़्ते का इस्तेमाल है तो उन्हें विस्तार से जाँचकर ही आकलन के लिए प्रस्तुत (submit) करें। 


नीचे दिए गए चित्र की मदद से आप नुक़्ता लगाकर लिखे गए देवनागरी लिपि के अक्षरों की ध्वनियों को समझ सकते हैं:




14. Currently we are accepting Sher, Ghazal and Nazm only.


उर्दू कविता विभिन्न प्रकार की होती है, जिसमें नज़्म, रुबाइयात, मर्सिया, ग़ज़ल आदि कई शैलियाँ हैं। लेकिन इनमें ग़ज़ल शेर और नज़्म सबसे ज़्यादा मक़बूल है। हर प्रकार की शैली को लिखने की अपनी ख़ास विधि होती है और प्रत्येक शैली अलग-अलग विषयों पर लिखी जाती है जो उर्दू कविता शास्त्र को और अधिक समृद्ध करती है। 


Poetistic हर तरह की कविता शैली की भरपूर सराहना करता है लेकिन वर्तमान में केवल तीन ही शैलियाँ आकलन के लिए स्वीकृत हैं (ग़ज़ल, नज़्म और शेर)। इन तीन शैलियों के अलावा किसी और शैली में प्रस्तुत की गई कविता Poetistic द्वारा आस्वीकृत कर दी जाएगी। 


15. Your content doesn't comply with the mentioned behr. Please check and resubmit.


इस कारण से आपका कंटेंट तब रद्द किया जाता है जब आपके द्वारा उल्लेखित की गई बहर का अनुपालन आपकी रचना न कर रही हो। Poetistic अपने तमाम users से ये अनुरोध करता है कि इस असुविधा से बचने के लिए अपने content को अच्छी तरह जाँचकर ही आकलन के लिए भेजें। 


16. The behr you have mentioned is not valid one.


जैसा कि आप जानते हैं की उर्दू शायरी में 32 प्रचलित बहरों के अलावा भी कई और बहरें हैं। लेकिन उर्दू शायरी की तमाम उप-बहरें मूल बहरों से ही निकलती हैं। उर्दू की बहरों का निर्माण विशेष रूप से शब्दों में मौजूद ध्वनि के मेलजोल से होता है। इन बहरों में शब्दों की सही स्थिति अहम भूमिका रखती है। बहरों की सारी पंक्तियाँ व्यवस्थित ढंग में रखी गई आवाज़ों से बनती हैं, जो एक अद्वितीय मौसिकी (music) को उत्पन्न करती हैं। इस तरह उर्दू की सभी बहरें संगीत की गहराइओं में डूबी होती हैं और सुनने वाले को एक आनंदमय अनुभव में ले जाती हैं।


ख़ुद से किसी बहर का निर्माण करना और फिर उस बहर पर लिखने में ग़लती की संभावना काफ़ी बढ़ जाती है। इसलिए शायर के लिए बेहतर है कि वो ऐसी बहर का चुनाव करे जो उर्दू अदब में स्वीकृत हो ताकि ग़लती की संभावना कम से कम हो। यदि आप ऐसी बहर में लिखते हैं जो मान्य नहीं है तो ऐसी स्थिति में आपका कंटेंट रिजेक्ट कर दिया जाएगा। 


17. Your content has been rejected due to shikast-e-narawaan. Please make appropriate corrections and resubmit.


शिकस्त-ए-ना-रवाँ या वक़्फ़ा उन बहरों में होता हैं जिनमें ज़िहाफ़ लगने के बाद अरकान ख़ुद को दोहराते हुए नज़र आते हैं। जैसे कि:-


(i) 221/1222//221/1222


(ii) 212/1222//212/1222


(iii) 221/2122//221/2122


(iv) 2112/1212//2112/1212


(v) 1121/2122//1121/2122


इन सभी बहरों में दो अरकान के बाद एक comma लगता है। आसान शब्दों में कहा जाए तो ये दो अरकान के बाद एक ठहराव है जहाँ comma लगाना लाज़िम है। इस तरह एक मिस्रा दो अलग टुकड़ों में बँट जाता है और एक शेर चार अलग टुकड़ों में बाँट कर लिखा जाता है। एक वक़्फ़े में एक संपूर्ण बात होनी चाहिए और शुरुआती दो अरकान का हिस्सा तीसरे अरकान तक नहीं जाना चाहिए। यदि आप ऊपर बताई गई बहरों में शेर या ग़ज़ल कह रहे हैं तो इस ख़ास नियम का ख़याल रखें। इस नियम पर संपूर्ण जानकारी के लिए आप Poetistic द्वारा शाया किए गए इस blog को पढ़ सकते हैं।


18. Your content has been rejected as both the lines of your sher didn't impart a similar idea.


शेर एक संयुक्त विचार को प्रस्तुत करता है। यदि शेर में ग़ैर-ज़रूरी शब्द शामिल होकर शेर के अर्थ पर बुरा प्रभाव डालते हैं तो शेर श्रोता को सार्थक मालूम नहीं होता है जिससे शेर के दोनों मिसरे एक संयुक्त विचार को प्रस्तुत करने में असमर्थ प्रतीत होते हैं। शेर के दोनों मिसरे इस तरह होना चाहिए कि दोनों मिसरों में एक ही मौज़ू पर ज़ोर दिया जाए और श्रोता के लिए शेर को समझने में आसानी पैदा हो और शेर पढ़ने वाले को शेर का आशय आसानी से समझ में आ जाए।


शेर की ज़बान सरल और सादा होने के साथ साथ रचनात्मक भी होना चाहिए। कहने का मतलब ये है कि यदि शब्दों का चुनाव साधारण हो लेकिन शेर में कही गई बात बा-मानी (meaningful) और तहदार होनी चाहिए। दिवाकर राही के इस शेर में आपको दोनों मिसरों की संयुक्तता देखने को मिलती है। नीचे दिए गए शेर में सादा ज़बान में शायर ने शराब पीने की बात की है और राही साहब का कमाल ये है कि उन्होंने कही भी शेर में शराब शब्द का प्रयोग नहीं किया इसके बावजूद भी पढ़ने वाले को शेर का आशय आसानी से समझ में आ जाता है। शेर कुछ यूँ है -


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19. Your content does not comply with the tune of Meer behr appropriately.


मीर बहर में हर मिसरे में कई अरकान इस्तेमाल हो सकते हैं। बस शर्त है कि सभी मिसरों की कुल मात्राएँ बराबर हो। साथ ही एक ख़ास शर्त है - लय की। बिना लय के इस बहर का अस्तित्व नहीं है। वैसे तो इस बहर के दोनों मिसरों में अलग-अलग तरह का मात्रा क्रम होता है लेकिन शेर पढ़ते वक़्त उसकी लय यदि सही है तो शेर बे-बहर यानी बिना बहर का नहीं लगता। इसलिए इस बहर की मुख्य शर्त है लय। यदि कहीं पर भी शेर की लय टूटती है तो शेर ख़ारिज माना जाता है।


20. Other reason


यदि इन कारणों के अलावा किसी अन्य कारण से आपकी शायरी रद्द होती है तो team Poetistic द्वारा आपको सूचित कर दिया जाएगा।


इसी के साथ इस ब्लॉग का इख़्तिताम करते हैं। उम्मीद करता हूँ कि कंटेंट ख़ारिज होने के ये तमाम कारण आपके समझ में आ गए होंगे और शायरी से संबंधित बताई गई ये बारीकियाँ आपको अच्छा शेर कहने के लिए प्रेरित भी करेंगी। तब तक शायरी का अपना सफ़र जारी रखिए और team Poetistic के साथ जुड़े रहिए। फिर मिलेंगे कुछ नए मसाइल और उनके हल के साथ।


धन्यवाद !