मैं उम्मीद करता हूँ कि आप सभी ने Poetistic पर मौजूद अभी तक के सभी Blogs पढ़कर उनसे बहुत सी नईं चीज़ें सीख कर अपने इल्म-ओ-फ़न में काफ़ी इज़ाफ़ा किया होगा। लेकिन वे सारी चीजें एक ही विषय से तअल्लुक़ रखती थी, जिसे हम 'ग़ज़ल' कहते हैं।
अरूज़(उर्दू काव्यशास्त्र) में ख़ास तौर पर दो तरह की शायरी होती है।
'ग़ज़ल' और 'नज़्म'।
मैं उम्मीद करता हूँ कि ग़ज़ल के बारे में आप काफ़ी हद तक जान चुके हैं। इस Blog में हम अरूज़(उर्दू काव्य शास्त्र) के दूसरे खंड 'नज़्म' के बारे में जानेंगे।
नज़्म क्या है और कितने प्रकार की होती है?
नज़्म:
नज़्म अरबी ज़बान का लफ़्ज़ है इसका वास्तविक अर्थ है "पिरोना"
लफ़्ज़ों को शायरी में इस तरह से पिरोना कि वह एक ही मौज़ूअ को बयान कर रही हो, यानी हर मिसरा या शेर एक दूसरे से राब्ता रखता हो, ऐसे मिसरों के समूह को हम नज़्म कहते हैं।
अमूमन नज़्में तीन तरह की होती हैं:
1) पाबन्द नज़्म
2) आज़ाद नज़्म
3) नस्री नज़्म
पाबन्द नज़्म:
पाबन्द नज़्म उस नज़्म को कहते हैं जिसमें बह्र के साथ-साथ क़ाफ़िए, रदीफ़ (ग़ज़ल की तरह यहाँ भी रदीफ़ होना ज़रूरी नहीं होता) आदि की पाबन्दी होती है। पाबन्द नज़्म और ग़ज़ल में बस इतना ही फर्क है कि पाबन्द नज़्म के सभी अशआर एक ही मौज़ूअ को बयान करते हैं लेकिन ग़ज़ल के तमाम अशआर अपने आप में मुख़्तलिफ़ मौज़ूअ पर होते हैं ग़ज़ल का हर शेर अपने आप में एक मुकम्मल नज़्म होता है।
शुरूआती दौर में नज़्मकारों ने सबसे ज्यादा पाबन्द नज़्में ही कहीं। कई दशकों तक पाबन्द नज़्में, ग़ज़ल के इलावा सुख़नवरों की पसंद बनी रहीं। ऐसा इसलिए भी क्योंकि पाबन्द नज़्में ग़ज़ल से ही मिलती जुलती है। पाबन्द नज़्म की भी कईं उपविधायें हैं मुसद्दस, मुख़म्मस आदि। आइए अब पाबन्द नज़्म को फ़ैज़ साहब के कलाम से समझते हैं उनकी एक नज़्म से जिसका उन्वान(उन्वान का अर्थ एक ऐसा शब्द या वाक्यांश होता है जिसे पढ़ कर या सुन कर पढ़ने या सुनने वाले को यह पता चल जाये कि नज़्म इस एक विषय के इर्द गिर्द ही होगी) है 'अंजाम' -
Atul Yadav Nirbhay
Bahut hi pyaara explanation.