क्या वो पहचान जाएगी मुझको - Brajnabh Pandey

क्या वो पहचान जाएगी मुझको
या अभी और सताएगी मुझको

सदियाँ गुज़री हैं तेरे पीछे जान
और कितना चलाएगी मुझको

मेरी हर बात काट के गई है
अब वो क्या मुँह दिखाएगी मुझको

रात का खाना खा लिया है अब
घर की तकलीफ़ खाएगी मुझको

बचपना ख़त्म हो गया है अब
अब मुहब्बत न भाएगी मुझको

नौकरी पर मैं लग गया हूँ 'ब्रज'
ज़िंदगी अब नचाएगी मुझको

इक ही उम्मीद पे तो ज़िंदा हूँ
मौत आकर बचाएगी मुझको

- Brajnabh Pandey
0 Likes

More by Brajnabh Pandey

As you were reading Shayari by Brajnabh Pandey

Similar Writers

our suggestion based on Brajnabh Pandey

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari