जो ख़ुद के ग़मों को ही सीते रहे - SAFEER RAY

जो ख़ुद के ग़मों को ही सीते रहे
तो भर भर के आँसू को पीते रहे

उधर फ़ासलों की इज़ाज़त न थी
सो हम फिर क़रीबी में जीते रहे

न साक़ी ने हमको ही रोका कभी
तो प्यालों पे प्याले यूँ पीते रहे

उधर ख़ुद को हिरनी बताते है वो
इधर हम शिकारी से चीते रहे

मना कर के हमको ये दुनिया थकी
जो करना था हमको तो कीते रहे

वो दुनिया की माना चहेती बहुत
तो हम भी ग़मों के चहीते रहे

- SAFEER RAY
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