करें शिकायत उन आसरों से जो उनको अब तक मिले नहीं हैं
करें मोहब्बत में जो ख़सारे वो फूल अब तक खिले नहीं हैं
ये पूछता है ज़र ओ चराग़ों ये ताप कैसा ये ज़ार कैसी
लगा के फिर लौ वो सब ज़रों को चराग़ अब तक हिले नहीं हैं
लगा के पैवंद वो मोहब्बत फिरे है दर दर जो बावली सी
फिरे है पागल बना के सबको हसीन आलम मिले नहीं हैं
दवाएँ खा खा जो जी रहे हो तुम्हारा पौरुष तो मर गया है
इधर भी मैदाँ में हम जो उतरें समझ की घंटों हिले नही हैं
वो उनकी बातें सुने जो महफ़िल करे चकल्लस वो पागलों सी
लगा के होंठों पे होंठ अपने खुले थे अब तक सिले नही हैं
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