तेरी निगाह-ए-शौक़ में क्या दर्द सा मिला
हर हाल में नसीब में धोखे का आइता
आहें मेरी तो तुमने सुनीं फिर भी बेअसर
शायद तुम्हीं को चाहिए कुछ और तोहफ़ा
ख़ामोश हो के भी मेरे हालात चीख़ते
इस दर्द-ए-हिज्र को मैं समझता हूँ फ़ासला
तू पास है तो दिल को सुकूॅं मिलता है मगर
हर बात में तेरा ही छलकता है वास्ता
तूने तो हुस्न का किया ऐलान हौले से
अब इश्क़ का ज़माना बना जैसे मसअला
क़िस्मत ही इश्क़ की रही मुझ पर गवाही दे
वरना तो हर ख़ुशी में मिला मुझको मरहला
दिल ने सफ़ीर हार नहीं मानी फिर कभी
हमने तो राह-ए-इश्क़ को समझा था फ़ाएदा
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