ये इल्तिजा है हमारी तुमसे जो हाल है कुछ तरस तो खाओ
हया से नज़रें भी फेरो तुम और हमारी हालत न देख पाओ
ये रात हिज्राँ है मौत जैसी खिंचेगी जब तक भी हम रहेंगे
ये दिन मिलन के है दो ही पल के पता नहीं है तो जान जाओ
हमारी आँखों में तुम बसे हो कि जैसे कोई अलग ही दुनिया
जो देखो शीशे में ख़ुद को तुम तो हमारा बनता ही अक्स पाओ
वो एक जलती सी लौ जो तुम हो नहाई बैठी है तीरगी में
हमारी हालत शलभ के जैसी जो हो सके है तो भूल जाओ
कसर है बाक़ी बस एक दिल में जो तुमसे मिलते तो हम ये कहते
सपीत-ए-इश्क़ा दिल-ए-फ़रोज़ाँ जो हो सके तो निकाल लाओ
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