शजर ही आसरा सब को सही देता
किसी को भी घना साया वही देता
ज़रा तुम ख़ूबियों पर ध्यान तो देना
जिए कैसे वही खाता-बही देता
शजर बूढ़ा हमेशा फल कहाँ देता
हक़ीक़त में बड़ा अंजाम ही देता
जुदा हो के सदा शादाब ही होता
वो सहरा में हमें साया वही देता
जहाँ में जब अकेला ही कोई होता
दुआ माँ-बाप जैसे ही वही देता
शजर का फिर कहाँ मज़हब कोई होता
किसी भी रंग में रंगत वही देता
“मनोहर” हक़ जताए जब लकड़हारा
शजर को कौन फिर जीने सही देता
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