पाज़ेब की आवाज़ ही अब गूँजती है कान में
होगी जहाँ भी तू कहीं लेकिन रहेगी ध्यान में
तारे कहाँ रौशन हुए सूरज बिना ऐ हम-नशीं
वो ही चमक देखी अभी तेरे मेरे अरमान में
ऐसा कोई मंज़र न ही पहले कभी देखा यहाँ
मेरे ख़ुदा इस शहर को रखना तेरे इम्कान में
हम एक ही हैं हम-नवा कोई बड़ा छोटा कहाँ
फिर इस जहाँ में फ़र्क़ क्यों इंसान की पहचान में
फ़ितरत अगर है नेक तो होगा सभी का ही भला
ऐ हम-नफ़स तू देख है कितनी दुआ ईमान में
क्यों काहिली को ही जगह कोई मिले इस दौर में
सच में कमी है ही नहीं अब तो किसी इंसान में
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