कैसे समझोगे तुम हमारा दुख
है हमारा, नहीं तुम्हारा दुख
जितना चाहो अता किए जाओ
आज कल है हमें गवारा दुख
एक दो दुख अगर हो कैसा दुख
हम को हैं एक सौ अठारह दुख
अब के आना तो फिर नहीं जाना
और देना न अब ख़ुदारा दुख
शादमाँ-दिल ये ख़ाक समझेंगे
किस क़दर होता है ये प्यारा दुख
कोई तो दुख का हो मिरे साथी
तन्हा फिरता है मारा मारा दुख
देख कर मुझ को लोग कहते हैं
है मुझे आज भी तुम्हारा दुख
कुछ ख़ुदा उस को भी दिया होता
क्या कि हम पर ही सब उतारा दुख
दुख से 'अशरफ़' दुखी हो के हम ने
ज़ोर से आख़िरश पुकारा दुख
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