वो इक तुम्हारा कमरा गर खाली है
फिर मेरे खातिर सारा घर खाली है
लानत है और हैरत ऐसे दिल पर के
भारी भारी रहता है पर खाली है
मैं कैसे बैठूँ उसके बाजू , कि जगह
न इधर खाली है ना ही उधर खाली है
As you were reading Shayari by Nirvesh Navodayan
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