देश पर जाँ निसार अपनी कर जो गया
वाक़ई वो जिया और अमर हो गया
इश्क़ का ज़ाम पीता गया झूमकर
इस अज़ब रिंदगी से सँवर वो गया
आँच आने न दी जिसने सीमाओं को
मौत बन दुश्मनों पे गहर जो गया
ईद होली दिवाली बुलाकर थकी
लौट वापस नहीं अपने घर को गया
ख़ून से ख़ुद के सींचा गुलिस्तान और
ख़ाक होकर इसी में बिखर जो गया
'नित्य' गाते रहेंगे ये शम्स-ओ-क़मर
शौर्य गीतांजली छोड़कर वो गया
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