ऋतु शरद कितनी सुहानी भा रही
हर जवाँ दिल की रज़ा हुलसा रही
गर्मियों से ऊबकर भागी ख़िज़ाँ
लू गई ठण्डी हवा हरषा रही
अब उमस बरसात की भी खो गई
कंबलों की रोशनाई गा रही
शम्स ने भी नर्म कुछ कर दी अदा
और कुब्बत धूप की शरमा रही
अब अलावों के किनारे बैठ कर
शेख़चिल्ली की कहानी छा रही
भूलकर शिकवे गिले अब गाँव में
खिलखिलाहट धूप में इठला रही
सर्दियों में गुनगुना सा ले बदन
नेह पाने सरि जलधि को जा रही
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