ऋतु शरद कितनी सुहानी भा रही

  - Nityanand Vajpayee

ऋतु शरद कितनी सुहानी भा रही
हर जवाँ दिल की रज़ा हुलसा रही

गर्मियों से ऊबकर भागी ख़िज़ाँ
लू गई ठण्डी हवा हरषा रही

अब उमस बरसात की भी खो गई
कंबलों की रोशनाई गा रही

शम्स ने भी नर्म कुछ कर दी अदा
और कुब्बत धूप की शरमा रही

अब अलावों के किनारे बैठ कर
शेख़चिल्ली की कहानी छा रही

भूलकर शिकवे गिले अब गाँव में
खिलखिलाहट धूप में इठला रही

सर्दियों में गुनगुना सा ले बदन
नेह पाने सरि जलधि को जा रही

  - Nityanand Vajpayee

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