अपने क़दमों में झुकाने पे तुली है दुनिया
मुझ को गुस्ताख़ बनाने पे तुली है दुनिया
घर मेरा फूस के छप्पर से सजाया मैंने
उस में भी आग लगाने पे तुली है दुनिया
माँ मेरी घर से निकलते ही मुझे देती जो
वो दुआएँ भी चुराने पे तुली है दुनिया
मेरे महबूब की पाज़ेब की झनकार-शुदा
ये मेरे गीत भुनाने पे तुली है दुनिया
मैंने अब तक तो नहीं ज़ख़्म दिखाया इसको
क्यों मेरा दर्द बढ़ाने पे तुली है दुनिया
लाख कोशिश थी कि दुनिया को मैं ख़ुश रख पाऊँ
फिर भी क्यों रूठ के जाने पे तुली है दुनिया
मुस्कुराता हुआ ख़ामोश ही रहता हूँ मगर
मेरे ग़ुस्से को जगाने पे तुली है दुनिया
सद्र जो 'नित्य' मेरे रक्स के चर्चा-गर हैं
उनको ख़ामोश कराने पे तुली है दुनिया
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