पाक चेहरों में नज़र आता है कोई कोई
बा-वज़ू होके भी दिखलाता है कोई कोई
आलम-ए-हश्र की नौबत है तो ये सुन लीजे
बा-वफ़ा होके भी पछताता है कोई कोई
अपने अंदाज़-ए-बयाँ को यूँ सँभालो यारो
बज़्म-ए-जानाँ से भी उठ जाता है कोई कोई
मेरी पुरज़ोर मुहब्बत का मज़ा लो यारो
रक़्स-ए-वहशत में उतर आता है कोई कोई
आप अपनी भी ज़रा सोचिएगा क्या होगा
मुझको हर बार ही मिल जाता है कोई कोई
बे-वफ़ा होने की जल्दी न करो ऐ जानाँ
बे-वफ़ा होके पलट आता है कोई कोई
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