रहती है पास और निभाती है दूर की
जन्नत में आ गई है ये झाड़ी बबूर की
आँखें मिला रहे हैं तो इतने तपाक से
करनी नहीं है हमको मुहब्बत हुज़ूर की
उस ओर जा रहे हैं तो हमको भी ले चलें
हमको भी देखनी है झलक कोह-ए-नूर की
रौशन कई दिए मेरी बस्ती में हो गए
बच्चों में आ रही है मुहब्बत शऊर की
इक बार मुफ़्लिसों को इशारा तो आप दें
पलकों पे उठ्ठा लेंगे ये बस्ती हुज़ूर की
मयख़ाना इक नया मेरे बस्ती में खुल गया
बच्चों को मिल रही है सज़ा बे-क़ुसूर की
दीवानगी में तू भी नया नाम दर्ज़ कर
'राकेश' तुझमें बू है शराब-ए-तहूर की
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