आकाश में उड़ता हुआ लश्कर नया मिला - Rakesh Mahadiuree

आकाश में उड़ता हुआ लश्कर नया मिला
क़ातिल तेरे हाथों में मुझे सर नया मिला

वो दिल यूँ मेरा तोड़ के है मुतमइन बहुत
मैं भी हूँ बहुत ख़ुश कि मुझे घर नया मिला

वो ऑंख जिसे नींद न आई हो रात भर
वो दिल कि जिसे ख़्वाब में दिलबर नया मिला

ख़ुशबू से बदन टूटता है आजकल मेरा
मुझको कि सर-ए-ख़्वाब मुक़द्दर नया मिला

कहते हैं जिसे फ़न कहीं शायद ये वो ही है
काग़ज़ से निकलता हुआ पत्थर नया मिला

ऐ दोस्त ज़रा सोच वो क्या ही कहेंगे शेर
वो जिनको सर-ए-राह सुख़नवर नया मिला

चुनती न अगर शायरी तो होते तुम कहाँ
राकेश तुम्हें शायरी से पर नया मिला

- Rakesh Mahadiuree
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