हमारी आँख में तुमको कहीं भी ग़म नहीं दिखता
तुम्हीं बतलाओ क्या तुमको ज़रा सा कम नहीं दिखता
तुम्हारी ज़िंदगी में फ़िर उजाला कौन रक्खेगा
हमारे जैसा तो हमको कोई हमदम नहीं दिखता
हमारे नाले सुनकर के ज़माने चीख़ उठते हैं
मगर उस बेवफ़ा को क्यूँ हमारा ग़म नहीं दिखता
सही कहते हैं साथी एक दिन वो रोएँगे मुझको
अभी जिनको तबाही का मेरे आलम नहीं दिखता
तुम्हारे शहर में साथी मुहब्बत ही मुहब्बत है
हमारे शहर में हमको कोई हमदम नहीं दिखता
चलो माना ये मैंने पत्थरों को दिल नहीं होते
तो क्या 'राकेश' सच उसको तुम्हारा ग़म नहीं दिखता
Read Full