मेरे इश्क़ की इंतिहा ही नहीं है
मियाँ ये न पूछो कि क्या ही नहीं है
कभी शाम के वक़्त निकलो सफ़र पे
कभी ज़िन्दगी तो जिया ही नहीं है
मेरे हाल पर इस तरह हँसने वाले
तेरे दिल को अबतक लगा ही नहीं है
कभी दिल किसी से लगाकर तो देखो
तुम्हें आशिक़ी का पता ही नहीं है
तुम्हें ज़िन्दगी का मज़ा होगा कैसे
कभी आशिक़ी तो किया ही नहीं है
मेरे नाम से काँप जाते हैं पत्थर
मेरा पत्थरों से भला ही नहीं है
चलो जाओ जाहिल से पत्थर पुजाओ
बिना इश्क़ मैंने जिया ही नहीं है
फ़क़त इश्क़ ही इश्क़ मैं हो गया हूँ
मेरे हक़ में मैं तो बचा ही नहीं है
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