ये सोचकर गुज़ार दी फ़रियाद के बग़ैर - Saqi Amrohvi

ये सोचकर गुज़ार दी फ़रियाद के बग़ैर
क्या लुत्फ़-ए-ज़िन्दगी किसी उफ़्ताद के बग़ैर

सब चल रहे हैं और किसी को ख़बर नहीं
कब कौन सैद हो गया सय्याद के बग़ैर

मैं तुझको भूल जाऊँ मगर मसअला ये है
कैसे कटेगी उम्र तेरी याद के बग़ैर

हम जैसे कुछ चराग़ हवाओं की ज़द पे भी
रौशन हैं आज तक किसी इमदाद के बग़ैर

क्या मदरसे की क़ैद निसाब-ए-ख़ुद-आगही
पढ़ता रहा हूँ मैं किसी उस्ताद के बग़ैर

- Saqi Amrohvi
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