कर लिए लाख जतन फिर भी न मंज़र बदला - Shakir Dehlvi

कर लिए लाख जतन फिर भी न मंज़र बदला
जब मेरी माँ ने दुआ दी तो मुक़द्दर बदला

एक मुद्दत हुई दोनों ही अड़े हैं ज़िद पर
प्यास हारी है मेरी और न समंदर बदला

मेरी लाचारी का उसने भी सदा मान रखा
यानी बदला है सितम और न सितमगर बदला

और बस चंद क़दम दूर थी मंज़िल अपनी
तू भी ऐ दोस्त ये किस मोड़ पे आकर बदला

ये जो तुम तल्ख़ियाॅं लहजे में लिए फिरते हो
सह न पाओगे मियाॅं हमने जो तेवर बदला

रोज़ तारीख़ कैलेंडर में बदल जाती थी
फिर वो तारीख़ भी आई कि कैलेंडर बदला

उसने हर बार ही कोशिश की बदलने की मुझे
और मैंने भी लिया उसको बदल कर बदला

- Shakir Dehlvi
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