हर इक तरफ से यूँहीं दिल की बाजी बस हारी गयी
दो दिन की थी अपनी मुहब्बत उम्र पर सारी गयी
क्या कुछ नही मुझको मिला तुझसे मुहब्बत के ब'अद
रुसवाई भी हुइ और दिल पे चोट भी मारी गयी
इस दौर में , जो चोट खाकर भी मुहब्बत कर रहा
ये कौन सा आशिक है जिसकी इतनी मत मारी गयी
तुम ही गुजरना अब मुहब्बत की गली से मेरे दोस्त !
मैंने बहुत दुख - दर्द झेले है , मेरी बारी गयी
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