हर इक तरफ से यूँहीं दिल की बाजी बस हारी गयी - karan singh rajput

हर इक तरफ से यूँहीं दिल की बाजी बस हारी गयी
दो दिन की थी अपनी मुहब्बत उम्र पर सारी गयी

क्या कुछ नही मुझको मिला तुझसे मुहब्बत के ब'अद
रुसवाई भी हुइ और दिल पे चोट भी मारी गयी

इस दौर में , जो चोट खाकर भी मुहब्बत कर रहा
ये कौन सा आशिक है जिसकी इतनी मत मारी गयी

तुम ही गुजरना अब मुहब्बत की गली से मेरे दोस्त !
मैंने बहुत दुख - दर्द झेले है , मेरी बारी गयी

- karan singh rajput
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