किसी से हम वफ़ा करे, हमे वफ़ा ही ना मिले
कि बदनसीब ऐसे भी नही, दुआ ही ना मिले
करेगा क्या दिले - बेताब इस सफर में तूने गर
सितम उठाये फिर भी यार का पता ही ना मिले
कभी कभी तो मुझको ये भी डर सताता रहता है
कहीं मैं आँख खोलूँ तो मुझे सुब्हा ही ना मिले
As you were reading Shayari by karan singh rajput
our suggestion based on karan singh rajput
As you were reading undefined Shayari