यहाँ तो क़ाफ़िले भर को अकेला छोड़ देते हैं

  - Shuja Khawar

यहाँ तो क़ाफ़िले भर को अकेला छोड़ देते हैं
सभी चलते हों जिस पर हम वो रस्ता छोड़ देते हैं

क़लम में ज़ोर जितना है जुदाई की बदौलत है
मिलन के बाद लिखने वाले लिखना छोड़ देते हैं

कभी सैराब कर जाता है हम को अब्र का मंज़र
कभी सावन बरस कर भी पियासा छोड़ देते हैं

ज़मीं के मसअलों का हल अगर यूँ ही निकलता है
तो लो जी आज से हम तुम से मिलना छोड़ देते हैं

मोहज़्ज़ब दोस्त आख़िर हम से बरहम क्यूँ नहीं होंगे
सग-ए-इज़हार को हम भी तो खुल्ला छोड़ देते हैं

जो ज़िंदा हो उसे तो मार देते हैं जहाँ वाले
जो मरना चाहता हो उस को ज़िंदा छोड़ देते हैं

मुकम्मल ख़ुद तो हो जाते हैं सब किरदार आख़िर में
मगर कम-बख़्त क़ारी को अधूरा छोड़ देते हैं

वो नंग-ए-आदमियत ही सही पर ये बता ऐ दिल
पुराने दोस्तों को इस तरह क्या छोड़ देते हैं

ये दुनिया-दारी और इरफ़ान का दावा 'शुजा-ख़ावर'
मियाँ इरफ़ान हो जाए तो दुनिया छोड़ देते हैं

  - Shuja Khawar

More by Shuja Khawar

As you were reading Shayari by Shuja Khawar

Similar Writers

our suggestion based on Shuja Khawar

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari