मोहब्बत जिस घड़ी कर ने चले थे
हमारी अक्ल पर पत्थर पड़े थे
उजड़ कर रह गया दिल का गुलिस्ताँ
ज़माने पहले याँ पर गुल खिले थे
हमें भी खा गई आख़िर निगोड़ी
बड़े क़िस्से मोहब्बत के सुने थे
तक़ाज़ा वक़्त का समझो मियाँ कुछ
वो दिन अब भूल जाओ जो बुरे थे
यहाँ आ कर बहुत हैरत-ज़दा हैं
यहीं इक रोज़ खुल कर हँस रहे थे
मुसीबत दो-गुना बढ़ने लगीं अब
गुज़िश्ता वक़्त में कितने मज़े थे
हथेली पर हमारा दिल रखा था
तेरे हाथों में जब खंजर छुपे थे
किसी ताले लगे कमरे में हैं अब
तुम्हारे नाम जो भी ख़त लिखे थे
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