सुब्ह उठते ही तुझे ढूँढतीं आँखें ऐसे
कम-नज़र शख़्स को चश्मा हो सहारा जैसे
टूटी कश्ती के सहारे मैं किनारे पहुँचा
तुझ तलक आना था सो आ गया जैसे तैसे
मैं वो गूँगा हूँ जिसे तुझ को बताना है कुछ
राह में और भी कुछ लोग मिले थे वैसे
एक किरदार निभाने में लगा है तू बस
तू मिरे साथ नहीं तुझ को बताऊँ कैसे
मैं उसी हाल में हूँ और उसी मुश्किल में
पंछी तूफ़ान में डाली से जुदा हो जैसे
काम आते हैं कई बार तो इंसान फ़क़त
हर जगह काम नहीं आते हैं पैसे वैसे
ये तो मालूम था तू थोड़ा जुदा है लेकिन
तेरे लहजे में ये नफ़रत ये बनावट कैसे
जीने मरने की क़सम खाई थी दोनों ने कभी
किस ने सोचा था कि हम लोग जुदा हों ऐसे
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