दिलों को आज़माना ही नही है
मेरा दुनिया निशाना ही नही है
मेरा बिस्तर ज़रा सहरा- नुमा है
कहीं कोई सिरहाना ही नही है
सभी का साथ देकर दर- बदर हूँ
भलाई का ज़माना ही नही है
तेरी दरिया -दिली किस काम कि फिर
अगर पीना पिलाना ही नही है
मुहब्बत मे हमें मरना है तबिश
मुहब्बत भूल जाना ही नही है
As you were reading Shayari by Vishal Singh Tabish
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