खंजर लिए खड़ा हूँ मुझे मार दीजिए
मैं एक सरफिरा हूँ मुझे मार दीजिए
इस ज़िन्दगी की क़ैद से इस भाग-दौड़ से
अब तंग आ गया हूँ मुझे मार दीजिए
ज़िन्दा रहा तो होंगी तुम्हें भी अज़ीयतें
मुश्किल हूँ, इक बला हूँ मुझे मार दीजिए
मुमकिन नहीं तुम्हारे करूँ मस'अलों को हल
बे-सूद मशवरा हूँ मुझे मार दीजिए
सुनता नहीं है कोई यहाँ मेरी बात क्यूँ ?
मैं कब से कह रहा हूँ मुझे मार दीजिए
इसके सिवा नहीं है कोई आरज़ू मिरी
बस मरना चाहता हूँ मुझे मार दीजिए
As you were reading Shayari by 'Amaan' Haider
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