देख ले मुझको तो दीवार से सट जाती है
वो परी शर्म की चादर से लिपट जाती है
इश्क़ बिखरा तो जफा, अश्क़ ग़म-ओ-हिज्र बना
धूप टूटे तो कई रंग में बँट जाती है
तीसरा आया मुहब्बत के गणित में जब भी
दो की संख्या भी यहाँ तीन से कट जाती है
हुस्न ऐसा कि फिसलती हैं निगाहें सबकी
ऐसा रस्ता है कि हर कार पलट जाती है
एक तू है कि किताबों में नहीं आ पाया
एक दुनिया है कि मिसरे में सिमट जाती है
दोस्तों ने यही कह कह के पिलाई मुझको
एक सिगरट से कहाँ ज़िंदगी घट जाती है
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