कोई सवाल न करना फ़क़त समझ लेना
समझ सको जो सही से ये ख़त समझ लेना
जो गिर पड़े हैं कहीं जान ख़त के आखिर में
उन आँसुओं को मेरा दस्तख़त समझ लेना
कहीं जगह न मिले मेरे दिल में आ जाना
तू मेरी छत को भी अपनी ही छत समझ लेना
मैं अबकी बार भी तुमसे सही कहूँगा सब
तुम अब की बार भी मुझको ग़लत समझ लेना
बग़ैर लौ के दिया भी दिया नहीं रहता
सो वक़्त रहते मेरी अहमियत समझ लेना
तुझे मैं शेर सुनाता हूँ जो मुहब्बत के
तू मेरी दोस्त इसे, इश्क़ मत समझ लेना
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