बेअदब सी कोई शिकायत है
बात बस एक अब रिवायत है
कुछ बताओ, उदास भी हो क्या
अच्छा, ख़ामोशी महज़ आदत है
सुब्ह से शाम काम है, यानी
सुब्ह से शाम आज फ़ुर्सत है
बेवज़ह सुब्ह-सुब्ह खुश हूँ मैं
नींद के पास कोई ने'मत है
सारा दिन घर में रहना, क्या है ये
सच कहो, कब से ऐसी हालत है
चुप रहूँ और माजरा कह दूँ
सोच लो, मैं कहूँ, क्या इजाज़त है
सुब्ह के चार बजने को आए
नींद किन ख्वाहिशों को रिश्वत है
बात मेरी समझ नहीं आई
आदमी की ही क्या ज़रूरत है
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