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Rahat Indori
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ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई माँगे
जो हो परदेस में वो किससे रजाई माँगे
अपने हाकिम की फ़क़ीरी पर तरस आता है
जो ग़रीबों से पसीने की कमाई माँगे
अपने मुंसिफ़ की ज़िहानत पे मैं क़ुर्बान कि जो
क़त्ल भी हम हो हमीं से ही वो सफाई माँगे
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Rahat Indori
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हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं
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मुझ में कितने राज़ हैं बतलाऊँ क्या
बंद एक मुद्दत से हूँ खुल जाऊँ क्या
आजिज़ी मिन्नत ख़ुशामद इल्तिजा
और मैं क्या क्या करूँ मर जाऊँ क्या
तेरे जलसे में तेरा परचम लिए
सैकड़ों लाशें भी हैं गिनवाऊँ क्या
कल यहाँ मैं था जहाँ तुम आज हो
मैं तुम्हारी ही तरह इतराऊँ क्या
एक पत्थर है वो मेरी राह का
गर न ठुकराऊँ तो ठोकर खाऊँ क्या
फिर जगाया तूने सोए शेर को
फिर वही लहजा दराज़ी आऊँ क्या
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Rahat Indori
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ये अलग बात कि ख़ामोश खड़े रहते हैं
फिर भी जो लोग बड़े हैं, वो बड़े रहते हैं
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झूठों ने झूठों से कहा है सच बोलो
सरकारी एलान हुआ है सच बोलो
घर के अंदर तो झूठों की एक मंडी है
दरवाज़े पर लिखा हुआ है सच बोलो
गुलदस्ते पर यकजहती लिख रक्खा है
गुलदस्ते के अंदर क्या है सच बोलो
गंगा मइया डूबने वाले अपने थे
नाव में किसने छेद किया है सच बोलो
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Rahat Indori
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हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते
जान होती तो मिरी जान लुटाते जाते
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते
अब के मायूस हुआ यारों को रुख़्सत कर के
जा रहे थे तो कोई ज़ख़्म लगाते जाते
रेंगने की भी इजाज़त नहीं हम को वर्ना
हम जिधर जाते नए फूल खिलाते जाते
मैं तो जलते हुए सहराओं का इक पत्थर था
तुम तो दरिया थे मिरी प्यास बुझाते जाते
मुझ को रोने का सलीक़ा भी नहीं है शायद
लोग हँसते हैं मुझे देख के आते जाते
हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
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Rahat Indori
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बुलाती है मगर जाने का नहीं
ये दुनिया है इधर जाने का नहीं
मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर
मगर हद से गुज़र जाने का नहीं
ज़मीं भी सर पे रखनी हो तो रखो
चले हो तो ठहर जाने का नहीं
सितारे नोच कर ले जाऊंगा
मैं खाली हाथ घर जाने का नहीं
वबा फैली हुई है हर तरफ
अभी माहौल मर जाने का नहीं
वो गर्दन नापता है नाप ले
मगर जालिम से डर जाने का नहीं
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Rahat Indori
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गुलाब, ख़्वाब, दवा, ज़हर, जाम क्या क्या है
मैं आ गया हूँ, बता इंतज़ाम क्या क्या है
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ज़बाँ तो खोल नज़र तो मिला जवाब तो दे
मैं कितनी बार लुटा हूँ मुझे हिसाब तो दे
तेरे बदन की लिखावट में है उतार चढ़ाव
मैं तुझे कैसे पढूँगा मुझे किताब तो दे
तेरा सवाल है साक़ी कि ज़िंदगी क्या है?
जवाब देता हूँ पहले मुझे शराब तो दे
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Rahat Indori
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शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे
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