शाम ढले मैं घर रौशन भी करता था
कितना कुछ तो मैं बेमन भी करता था
दुनिया मुझसे सिर्फ़ मोहब्बत करती है
वो दीवाना पागलपन भी करता था
तुम जो कहते थे ना इक दिन छू लोगे
छू लेते ना मेरा मन भी करता था
मेरे सिरहाने वो घुँघरू गुमसुम है
उसके पैरों में छनछन भी करता था
उसके हाथों में बस हम ही जँचते थे
दावा सोने का कंगन भी करता था
Read Full