मेरी जाँ भी लुटा दूँ आबरू क्या है
मुझे तू पूछती है आरज़ू क्या है
ये हीरा कोयले में था बहुत पहले
क़रीब आ मेरे समझाऊँगा तू क्या है
परख है ग़ैर दरवाज़े को जब तेरी
जहाँ में यार फिर ये बा-वुज़ू क्या है
ज़माना फ़ोन पर जो इश्क़ करता है
पता है क्या छतों की ग़ुफ़्तगू क्या है
अलामत की है मच्छर और उसने भी
पता है दोनों को मेरा लहू क्या है
गिराना ख़ुद को इतना भी न तू 'सौरभ'
तुझे पूछे सभी बे-आबरू क्या है
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