न दख़्ल दे न मुझे मशवरा करे कोई
जो कर सके तो मुझे ग़मज़दा करे कोई
कहाँ तलक किसी की इब्तिग़ा करे कोई
कहाँ तलक किसी से इल्तिजा करे कोई
मैं वो नहीं जो ज़माने के डर से डर जाए
मुझे ख़राब कहे तो कहा करे कोई
किसी किसी से तो अपना मिज़ाज मिलता है
दिल अब जो उसको भी खो दे तो क्या करे कोई
ये बात और है सबसे अलग खड़ा हूँ मैं
मगर जी चाहता है राब्ता करे कोई
मिले अगर तो तकल्लुफ़ से क्यों मिले कोई
न दिल करे तो मुझे क्यों मिला करे कोई
मैं सच के साथ हूँ इतनी सी इल्तिज़ा है मेरी
भले न साथ दे लेकिन दुआ करे कोई
तबाह हो के मैं जाऊँ भी तो कहाँ जाऊँ
अब ऐसे शख़्स से क्यों राब्ता करे कोई
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