इस दौर-ए-मुफ़लिसी का हमने इलाज देखा
सारे सुख़नवरों को आशिक़ मिज़ाज देखा
महताब देखता था मैं घर की खिड़कियों से
महताब ने दरीचे से मुझको आज देखा
पट भी सभी खुले हैं दरबान भी नहीं है
इस बज़्म का अलग ही रस्म-ओ-रिवाज देखा
आज आख़िरी दफ़ा था पानी से पेट भरना
बच्चों ने आज जाके घर में अनाज देखा
सच की डगर पे जब भी रक्खे क़दम किसी ने
पहले तो देखी ग़ुरबत फिर तख़्त-ओ-ताज देखा
As you were reading Shayari by Amaan Pathan
our suggestion based on Amaan Pathan
As you were reading undefined Shayari