मैं रह रहा हूँ ग़मज़दा सा यार तेरे बिन बहुत
ज़ियादा प्यार चाहिए किसे हैं चार दिन बहुत
है दफ़्तर इस क़दर जहन्नुम इसलिए हूँ चिड़चिड़ा
किराए का मकान है खड़ू़स मालकिन बहुत
डरा डरा सा फिर रहा था तीरगी में डूब कर
मैं देख कर तुझे सनम हुआ हूँ मुतमइन बहुत
मैं ज़िंदगी के हर पड़ाव पर रहूँगा तेरे साथ
सरल बहुत है बोलना निभाना है कठिन बहुत
जो संसदों में हैं कमाते दो करोड़ रोज़ के
उन्हें पता नहीं ग़रीब के बुरे हैं दिन बहुत
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