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Wafa Shayari

Here is a curated collection of Wafa shayari in Hindi. You can download HD images of all the Wafa shayari on this page. These Wafa Shayari images can also be used as Instagram posts and whatsapp statuses. Start reading now and enjoy.

भले दिनों की बात है
भली सी एक शक्ल थी
न ये कि हुस्न-ए-ताम हो
न देखने में आम सी
न ये कि वो चले तो कहकशाँ सी रहगुज़र लगे
मगर वो साथ हो तो फिर भला भला सफ़र लगे

कोई भी रुत हो उस की छब
फ़ज़ा का रंग-रूप थी
वो गर्मियों की छाँव थी
वो सर्दियों की धूप थी

न मुद्दतों जुदा रहे
न साथ सुब्ह-ओ-शाम हो
न रिश्ता-ए-वफ़ा पे ज़िद
न ये कि इज़्न-ए-आम हो

न ऐसी ख़ुश-लिबासियाँ
कि सादगी गिला करे
न इतनी बे-तकल्लुफ़ी
कि आइना हया करे

न इख़्तिलात में वो रम
कि बद-मज़ा हों ख़्वाहिशें
न इस क़दर सुपुर्दगी
कि ज़च करें नवाज़िशें
न आशिक़ी जुनून की
कि ज़िंदगी अज़ाब हो
न इस क़दर कठोर-पन
कि दोस्ती ख़राब हो

कभी तो बात भी ख़फ़ी
कभी सुकूत भी सुख़न
कभी तो किश्त-ए-ज़ाफ़राँ
कभी उदासियों का बन

सुना है एक उम्र है
मुआमलात-ए-दिल की भी
विसाल-ए-जाँ-फ़ज़ा तो क्या
फ़िराक़-ए-जाँ-गुसिल की भी

सो एक रोज़ क्या हुआ
वफ़ा पे बहस छिड़ गई
मैं इश्क़ को अमर कहूँ
वो मेरी ज़िद से चिड़ गई

मैं इश्क़ का असीर था
वो इश्क़ को क़फ़स कहे
कि उम्र भर के साथ को
वो बद-तर-अज़-हवस कहे

शजर हजर नहीं कि हम
हमेशा पा-ब-गिल रहें
न ढोर हैं कि रस्सियाँ
गले में मुस्तक़िल रहें

मोहब्बतों की वुसअतें
हमारे दस्त-ओ-पा में हैं
बस एक दर से निस्बतें
सगान-ए-बा-वफ़ा में हैं

मैं कोई पेंटिंग नहीं
कि इक फ़्रेम में रहूँ
वही जो मन का मीत हो
उसी के प्रेम में रहूँ

तुम्हारी सोच जो भी हो
मैं उस मिज़ाज की नहीं
मुझे वफ़ा से बैर है
ये बात आज की नहीं

न उस को मुझ पे मान था
न मुझ को उस पे ज़ोम ही
जो अहद ही कोई न हो
तो क्या ग़म-ए-शिकस्तगी
सो अपना अपना रास्ता
हँसी-ख़ुशी बदल दिया
वो अपनी राह चल पड़ी
मैं अपनी राह चल दिया

भली सी एक शक्ल थी
भली सी उस की दोस्ती
अब उस की याद रात दिन
नहीं, मगर कभी कभी
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Ahmad Faraz
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मैं पल-दो-पल का शायर हूँ, पल-दो-पल मेरी कहानी है
पल-दो-पल मेरी हस्ती है, पल-दो-पल मेरी जवानी है

मुझ से पहले कितने शायर आए और आ कर चले गए
कुछ आहें भर कर लौट गए, कुछ नग़में गा कर चले गए
वे भी एक पल का क़िस्सा थे, मैं भी एक पल का क़िस्सा हूँ
कल तुम से जुदा हो जाऊंगा गो आज तुम्हारा हिस्सा हूँ

मैं पल-दो-पल का शायर हूँ, पल-दो-पल मेरी कहानी है
पल-दो-पल मेरी हस्ती है, पल-दो-पल मेरी जवानी है

कल और आएंगे नग़मों की खिलती कलियाँ चुनने वाले
मुझसे बेहतर कहने वाले, तुमसे बेहतर सुनने वाले
कल कोई मुझ को याद करे, क्यों कोई मुझ को याद करे
मसरुफ़ ज़माना मेरे लिए, क्यों वक़्त अपना बरबाद करे

मैं पल-दो-पल का शायर हूँ, पल-दो-पल मेरी कहानी है
पल-दो-पल मेरी हस्ती है, पल-दो-पल मेरी जवानी है

मैं हर इक पल का शायर हूँ हर इक पल मेरी कहानी है
हर इक पल मेरी हस्ती है हर इक पल मेरी जवानी है

रिश्तों का रूप बदलता है, बुनियादें खत्म नहीं होतीं
ख़्वाबों और उमँगों की मियादें खत्म नहीं होतीं
इक फूल में तेरा रूप बसा, इक फूल में मेरी जवानी है
इक चेहरा तेरी निशानी है, इक चेहरा मेरी निशानी है

मैं हर इक पल का शायर हूँ हर इक पल मेरी कहानी है
हर इक पल मेरी हस्ती है हर इक पल मेरी जवानी है

तुझको मुझको जीवन अम्रित अब इन हाथों से पीना है
इनकी धड़कन में बसना है, इनकी साँसों में जीना है
तू अपनी अदाएं बक्ष इन्हें, मैं अपनी वफ़ाएं देता हूँ
जो अपने लिए सोचीं थी कभी, वो सारी दुआएं देता हूँ

मैं हर इक पल का शायर हूँ हर इक पल मेरी कहानी है
हर इक पल मेरी हस्ती है हर इक पल मेरी जवानी है
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Sahir Ludhianvi
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आप जैसों के लिए इस में रखा कुछ भी नहीं
लेकिन ऐसा तो न कहिए कि वफ़ा कुछ भी नहीं

आप कहिए तो निभाते चले जाएँगे मगर
इस तअ'ल्लुक़ में अज़िय्यत के सिवा कुछ भी नहीं

मैं किसी तरह भी समझौता नहीं कर सकता
या तो सब कुछ ही मुझे चाहिए या कुछ भी नहीं

कैसे जाना है कहाँ जाना है क्यूँ जाना है
हम कि चलते चले जाते हैं पता कुछ भी नहीं

हाए इस शहर की रौनक़ के मैं सदक़े जाऊँ
ऐसी भरपूर है जैसे कि हुआ कुछ भी नहीं

फिर कोई ताज़ा सुख़न दिल में जगह करता है
जब भी लगता है कि लिखने को बचा कुछ भी नहीं

अब मैं क्या अपनी मोहब्बत का भरम भी न रखूँ
मान लेता हूँ कि उस शख़्स में था कुछ भी नहीं

मैं ने दुनिया से अलग रह के भी देखा 'जव्वाद'
ऐसी मुँह-ज़ोर उदासी की दवा कुछ भी नहीं
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Jawwad Sheikh
बड़ा एहसान हम फ़रमा रहे हैं
कि उन के ख़त उन्हें लौटा रहे हैं

नहीं तर्क-ए-मोहब्बत पर वो राज़ी
क़यामत है कि हम समझा रहे हैं

यक़ीं का रास्ता तय करने वाले
बहुत तेज़ी से वापस आ रहे हैं

ये मत भूलो कि ये लम्हात हम को
बिछड़ने के लिए मिलवा रहे हैं

तअ'ज्जुब है कि इश्क़-ओ-आशिक़ी से
अभी कुछ लोग धोका खा रहे हैं

तुम्हें चाहेंगे जब छिन जाओगी तुम
अभी हम तुम को अर्ज़ां पा रहे हैं

किसी सूरत उन्हें नफ़रत हो हम से
हम अपने ऐब ख़ुद गिनवा रहे हैं

वो पागल मस्त है अपनी वफ़ा में
मिरी आँखों में आँसू आ रहे हैं

दलीलों से उसे क़ाइल किया था
दलीलें दे के अब पछता रहे हैं

तिरी बाँहों से हिजरत करने वाले
नए माहौल में घबरा रहे हैं

ये जज़्ब-ए-इश्क़ है या जज़्बा-ए-रहम
तिरे आँसू मुझे रुलवा रहे हैं

अजब कुछ रब्त है तुम से कि तुम को
हम अपना जान कर ठुकरा रहे हैं

वफ़ा की यादगारें तक न होंगी
मिरी जाँ बस कोई दिन जा रहे हैं
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Jaun Elia
दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है

हम हैं मुश्ताक़ और वो बे-ज़ार
या इलाही ये माजरा क्या है

मैं भी मुंह में ज़बान रखता हूँ
काश पूछो कि मुद्दआ' क्या है

जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद
फिर ये हंगामा ऐ ख़ुदा क्या है

ये परी-चेहरा लोग कैसे हैं
ग़म्ज़ा ओ इश्वा ओ अदा क्या है

शिकन-ए-ज़ुल्फ़-ए-अंबरीं क्यूंहै
निगह-ए-चश्म-ए-सुरमा सा क्या है

सब्ज़ा ओ गुल कहांसे आए हैं
अब्र क्या चीज़ है हवा क्या है

हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है

हांभला कर तिरा भला होगा
और दरवेश की सदा क्या है

जान तुम पर निसार करता हूं
मैं नहीं जानता दुआ क्या है

मैं ने माना कि कुछ नहीं 'ग़ालिब'
मुफ़्त हाथ आए तो बुरा क्या है
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Mirza Ghalib

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