तू ये मत सोच मैं हो कर जुदा अब रह न पाऊँगा
तिरी यादों के मरकज़ से निकल कर मैं दिखाऊँगा
मिली मोहलत जो मुझ को तुम से मिलने की तो बेहतर है
मिला जो वक़्त कम तो जेब में रख चाँद लाऊँगा
नमक हर ज़ख़्म पर मेरे शहद जैसा लगे है अब
मैं चाहत की सभी रस्मों को मर कर भी निभाऊँगा
तिरे माथे को चूमूँगा मैं चूमूँगा ये दोनों हाथ
तू जब भी रूठ जाएगी मैं कुछ ऐसे मनाऊँगा
मैं कैसे भूल जाऊँ वो मोहब्बत के जवाँ मंज़र
तिरी बातें जवाँ रातें मैं कैसे भूल पाऊँगा
पसंद आये मोहब्बत तो रखो वर्ना मना कर दो
नयी फिर जिल्द मैं दिल की किताबों पर चढ़ाऊँगा
अमान ऐसे भी हैं कुछ लोग जिन को फ़िक्र है तेरी
मैं उन लोगों की ख़ातिर एक दिन बँगले बनाऊँगा
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