भले ही ग़ुस्से में पहले दो तीन तमाचे लगाएगा
लेकिन फिर भी आड़े वक़्त में काम तो बाप ही आएगा
काठ की हाँडी अब न चढ़ेगी ज़ुल्म के चूल्हे पर यारो
वक़्त का पहिया घूमेगा मुंसिफ़ भी जेल में जाएगा
तीर लगा था पीठ पे जो अब निकल गया है सब्र करो
अब उट्ठेगा चीता वापिस गरजेगा ग़ुर्राएगा
उसको भी तो याद आएँगे साथ बिताये वो लम्हें
वो भी तड़पेगा रातों में चीखेगा चिल्लाएगा
वक़्त बचा है कुछ सालों का कर ले जो भी करना है
सर पीटेगा रातों में फिर बच्चों पर झुँझलाएगा
झूटी तारीफ़ों के पीछे भागते रहते हो दिन भर
अभी अगर मैं सच कह दूँगा वो तुम को चुभ जाएगा
उसे मेरे शेर-ओ-फ़न से जाने क्यूँ इतनी वहशत है
पहले ग़ज़लें दफ़्न करेगा फिर मुझको दफ़नाएगा
तू जो करना चाहे कर ले सर न झुकेगा तेरे आगे
बंदे तो ले आएगा तू ख़ुदा कहाँ से लाएगा
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