फ़िक्र परवाज़ पे होती है ग़ज़ल होती है - Anis shah anis

फ़िक्र परवाज़ पे होती है ग़ज़ल होती है
फ़स्ल-ए-गुल ज़ेह्न में बोती है ग़ज़ल होती है

मश्क़ जब हुस्न-ए-तख़य्युल को बढ़ाने के लिए
खूँ में अश्आर डुबोती है ग़ज़ल होती है

बह्र के धागे में चुन चुन के अदब की मालिन
लफ़्ज़ के फूल पिरोती है ग़ज़ल होती है

दिल के काग़ज़ पे मज़ामीन उतर आते हैं
बात इल्हाम जो होती है ग़ज़ल होती है

शब-ए-तन्हाई के आलम में दिल-ए-मुज़्तर में
याद नश्तर सा चुभोती है ग़ज़ल होती है

ग़म-ए-हिज्राँ में तड़पती हुई कोई बिरहन
तकिया अश्कों से भिगोती है ग़ज़ल होती है

कोई मज़लूम पे जब ज़ुल्म-ओ-सितम ढाए अनीस
दिल में यलग़ार सी होती है ग़ज़ल होती है

- Anis shah anis
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