मुसीबतों में ये जीवन दिखाई देता है
ये राहबर मुझे रहज़न दिखाई देता है
कहाँ किसी को ये निर्धन दिखाई देता है
हर एक शख़्स को बस धन दिखाई देता है
ये कैसा वह्म-ओ-गुमाँ पाल रक्खा है तूने
हर आदमी तुझे दुश्मन दिखाई देता है
छुपा हुआ है तेरे दिल में नाग नफ़रत का
कभी कभार मुझे फन दिखाई देता है
हुआ है अंधा वो सावन में इसलिए अब तक
हरा-भरा उसे उपवन दिखाई देता है
बदन से आके लिपट जाते हैं भुजंग कई
जो कोई भी इन्हें चंदन दिखाई देता है
जदीद दौर है फ़ैशन के नाम पर अब तो
लिबास ऐसा कि ये तन दिखाई देता है
अनीस ऐब छुपाऊँ में अपने कैसे अब
हर एक हाथ में दरपन दिखाई देता है
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