इश्क़ दहलीज़ पर रुका होगा
वो मगर आगे बढ़ गया होगा
कौन जाने सुकूत के अंदर
शोर कितना मचल रहा होगा
यूॅं नहीं गिर्या में रहीं आँखें
अब्र पलकों पे रुक गया होगा
बिंत-ए-हव्वा के फिर से चक्कर में
कोई आदम भटक गया होगा
दिल लगाऍंगे अब उसी बुत से
जो न इंसाँ न ही ख़ुदा होगा
चाँद सूरज को करके मुट्ठी में
आसमाँ में कहीं उगा होगा
तितलियाँ फूल चाँदनी रातें
बाग़ में उसके और क्या होगा
ख़्वाब टूटेंगे किर्चियाँ बन कर
आँख में जिनके आइना होगा
As you were reading Shayari by Mohd Arham
our suggestion based on Mohd Arham
As you were reading undefined Shayari