इश्क़ दहलीज़ पर रुका होगा - Mohd Arham

इश्क़ दहलीज़ पर रुका होगा
वो मगर आगे बढ़ गया होगा

कौन जाने सुकूत के अंदर
शोर कितना मचल रहा होगा

यूॅं नहीं गिर्या में रहीं आँखें
अब्र पलकों पे रुक गया होगा

बिंत-ए-हव्वा के फिर से चक्कर में
कोई आदम भटक गया होगा

दिल लगाऍंगे अब उसी बुत से
जो न इंसाँ न ही ख़ुदा होगा

चाँद सूरज को करके मुट्ठी में
आसमाँ में कहीं उगा होगा

तितलियाँ फूल चाँदनी रातें
बाग़ में उसके और क्या होगा

ख़्वाब टूटेंगे किर्चियाँ बन कर
आँख में जिनके आइना होगा

- Mohd Arham
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