मोहब्बत में ये ग़लती क्यों दुबारा - "Dharam" Barot

मोहब्बत में ये ग़लती क्यों दुबारा
अकेलापन अकेला है हमारा

नहीं है कोई शुभ चिंतक हमारा
किसी से मत कहो मैं हूँ तुम्हारा

कोई बदलाव आया ही नहीं बस
बड़ी मेहनत से है ख़ुद को सँवारा

नहीं अपनों का कोई हाथ इसमें
यहाँ हर एक है अपनों से हारा

मज़ा है हारकर अपनों से देखो
'धरम' अपनों से ही मिलता सहारा

- "Dharam" Barot
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